नई दिल्ली। हर साल उपर नीचे होता प्याज़ निर्यात पर रोक और नवरात्रि में कम उपयोग के कारण नीचे उतरने लगा है। भाव कम हो रहे हैं। महंगे होते प्याज के दाम को काबू में लाने के लिए सरकार ने इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी, और कुछ अन्य कारणों से इसका मोल कम हो रहा है। सरकार ने 13 सितंबर को न्यूनतम निर्यात मूल्य का निर्धारण किया था। कीमतें काबू में नहीं आईं जमाखोरों ने अपने करतब दिखाने शुरू किये लगातार निर्यात होते रहने की वजह से सरकार को यह रोक लगानी पड़ी। इसी के साथ थोक और खुदरा कारोबारियों के भंडारण को भी सीमित किया गया, ताकि जमाखोरी को रोका जा सके तथा बाजार में प्याज की उपलब्धता बनी रहे| सरकारी अधिकारियों ने महाराष्ट्र के किसानों और कारोबारियों से मिलकर प्याज का भंडारण न करने का आग्रह भी किया है।
वैसे भी सितंबर में मौसमी कारणों से प्याज की कीमतें बढ़ने का अक्सर रुझान रहता है, लेकिन एक-दो साल के अंतराल पर अनेक कारकों के चलते दाम बेतहाशा बढ़ जाते हैं। देशभर में भोजन का जरूरी तत्व होने के कारण प्याज की कीमतों में उछाल एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा भी बन जाता है। इस बार लगातार बारिश के कारण दक्षिण भारत और अन्य राज्यों में महाराष्ट्र की प्याज की मांग बहुत बढ़ गयी थी। बढ़त का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि थोक बाजार में 31 जुलाई को प्रति क्विंटल 1250 रुपये के औसत मूल्य से बिकनेवाला प्याज 19 सितंबर को 4500 रुपये तक जा पहुंचा था। सरकार के निर्णयों के बाद दक्षिण भारत में ताजा प्याज आने और महाराष्ट्र में समुचित मात्रा में इसके भंडार की खबरों के बाद दामों में गिरावट आयी है|
जन सामान्य के रोष के कारण और विभिन्न उपायों और अधिकारियों की मुस्तैदी से इंगित होता है कि इस मसले पर सरकार गंभीर है और जरूरी कदम उठा रही है। बाजार में पर्याप्त मात्रा में प्याज की आपूर्ति होने के साथ कीमतों में गिरावट की उम्मीद है. जानकारों का मानना है कि थोक बाजार में एक-दो दिन के भीतर दामों में पांच सौ रुपये प्रति क्विंटल की कमी हो सकती है। इसका साफ अर्थ यह है कि इसी सप्ताह खुदरा बाजार में भी राहत मिल सकेगी। सरकार को चाहिए कि इसके साथ वे सभी जरूरी कदम उठाये कि दाम में उछाल रुके। इसके इस सिलसिले को रोकने के लिए ऐसे ठोस उपाय किये जायें, जिससे उपभोक्ताओं को महंगाई का सामना न करना पड़े, किसानों को भी उपज की सही कीमत मिले और निर्यातकों को भी नुकसान न हो। इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण है भंडारण और संवर्द्धन को प्राथमिकता देना, ताकि निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
यह सर्वज्ञात तथ्य है कि प्याज बहुत कम खर्च में पूरे साल उगाया जा सकता है। इस पहलू पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए। यदि कड़े प्रशासनिक उपायों से कीमतों को नियंत्रित किया जाता है, तो इससे किसानों को घाटा हो सकता है। वे बाज़ार में ऐसे में फसल नहीं लाते हैं। सरकार को संकट के समय एक ऐसी नीति बनाना चाहिए जिससे जमाखोरी रुके। जमाखोरी रोकने में और अधिक सक्रियता दिखानी चाहिए. ऐसे प्रयास किसान और उपभोक्ता के हितों के पक्ष में होंगे। आपूर्ति ठीक रखने के लिए निर्यात रोकने की जगह आयात बढ़ाने पर विचार होना चाहिए और पहले से ही तैयारियां कर लेनी चाहिए। एक विकल्प ऐसी जगहों जैसे रेस्टारेंट और जहाँ पर सूखे प्याज का उपभोग बढ़ाने का प्रयास होना चाहिए, जहां बहुत अधिक खपत होती है| दीर्घकालिक उपायों पर ध्यान देने के आर्थिक लाभ तो होंगे ही साथ ही किसान और आम आदमी जिसकी जिन्दगी रोटी और प्याज से चलती है, चैन की साँस ले सकेंगे।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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