संदीप शुक्ला, ब्यूरो चीफ, ग्वालियर (मप्र), NIT:

10 नवंबर चुनाव की मतगणना की रात 1.30 बजे जब सुरक्षा व्यवस्था में तैनात दो डीएसपी सड़क किनारे ठंड से ठिठुर रहे और कचरे में खाना ढूंढ रहे भिखारी को देखते हैं तो एक अधिकारी ने अपने जूते और दूसरे ने अपनी जैकेट दे दी और जब दोनों डीएसपी वहां से जाने लगे तो भिखारी डीएसपी को नाम से पुकाराता है जिसके बाद दोनों अचंभित हो जाते हैं और पलट कर गौर से भिखारी को पहचानते हैं तो वह खुद भी हैरान रहे गए क्योंकि भिखारी उनके साथ के बैच का सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा था। जानकारी के अनुसार वह 10 साल से सड़कों पर लावारिस हाल में घूम रहा था। दरअसल मनीष मिश्रा अपना मानसिक संतुलन खो बैठा, वह शुरूआत में 5 साल तक घर पर रहे इसके बाद घर में नहीं रूके यहां तक कि इलाज के लिए जिन सेंटर व आश्रम में भर्ती कराया वहां से भी भाग गए थे, जो अब सड़कों पर भीख मांग कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
सन् 1999 पुलिस बैच का अचूक निशानेबाज़ थानेदार था मनीष मिश्रा
ग्वालियर के झांसी रोड इलाके में सालों से सड़कों पर लावारिस घूम रहे मनीष सन् 1999 पुलिस बैच का अचूक निशानेबाज थानेदार थे। मनीष दोनों अफसरों के साथ 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर में भर्ती हुआ था। दोनों डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय भदोरिया ने इसके साथ काफी देर तक मनीष मिश्रा से पुराने दिनों की बात की और अपने साथ ले जाने की जिद की लेकिन वह साथ जाने को राजी नहीं हुआ और आखिर में समाज सेवी संस्था से उसे आश्रम भिजवा दिया गया जहां उसकी अब बेहतर देखरेख हो रही है।
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