भोपाल। मई का सूरज भोपाल के आसमान में तप रहा है, पर तपिश वैसी नहीं है, जैसी पिछले सालों में रही है।लॉक डाउन में घोषित कार्यक्रम के अनुसार रात 7 बजे से सुबह 7 बजे तक घर से निकलने पर पाबंदी है, पर अब सुबह 7 बजे का मौसम भी बड़ा खुशगवार होता है। 5 बजे सुबह से चिड़ियों का कलरव सुनाई देने लगा है, जिसे भोपाल के शोर ने पिछले 20 सालों से निगल रखा था।
कलियासोत बांध का पानी निर्मल दिखने लगा है। काश ! बड़े तालाब में मिलने वाले नाले और शाहपुरा तालाब में मिलने वाले नाले रुकते तो, भोपाल 50 बरस पहले का भोपाल हो जाता। भोपाल ही नहीं देश और हिस्सों से पर्यावरण निर्मल होने के समाचार मिल रहे है ये दुष्काल में मिलने वाले सकारात्मक समाचार हैं| जैसे यह समाचार कि हरिद्वार और कानपुर में गंगा में कल-कल कर निर्मल जल बह रहा है| दिल्ली में नदी से नाला बन चुकी यमुना का जल निर्मल हो गया है। भारत ही नहीं विश्व में ऐसे कीर्तिमान बन रहे है। नासा का कहना है कि दुनियाभर में लॉकडाउन के कारण दो दशक में सबसे कम प्रदूषण स्तर दर्ज किया गया है।
देश में प्रदूषण से होने वाली मौतें भी रुक गयी हैं। स्वच्छ पर्यावरण के लाभ का आकलन मुश्किल है, फिर भी लॉकडाउन ने न केवल जीवनशैली में बदलाव करने को बाध्य किया है, बल्कि जरूरत और उपभोक्तावादी प्रवृत्ति के बीच अंतर करना भी सिखा दिया है। इस बात को कहा जा सकता है कि भविष्य में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से लोगों के कामकाज का तरीका बदलेगा और आवाजाही घटेगी। इसका सीधा असर प्रदूषण पर पड़ेगा और आबोहवा साफ होगी। प्रदूषण के मामले में कुछ प्रदेशो और देश के कई बड़े शहरों में भी हालात कोई बहुत बेहतर नहीं रहे हैं। देश के विभिन्न शहरों से प्रदूषण को लेकर पिछले कई वर्षों से लगातार चिंताजनक रिपोर्टें आ रही हैं, लेकिन स्थिति जस-की-तस है| हम इस ओर आंख मूंदे थे।
समाज में इसे लेकर कोई विमर्श नहीं हो रहा था। सोशल मीडिया पर कोरोना और अन्य विषयों को लेकर रोजाना बेमतलब के ढेरों लतीफे चलते हैं, लेकिन पर्यावरण जागरूकता को लेकर संदेशों का आदान-प्रदान अब भी नहीं होता है, जबकि यह मुद्दा हमारे-आपके जीवन से जुड़ा हुआ है| अपने देश में स्वच्छता और प्रदूषण का परिदृश्य वर्षों से निराशाजनक चला रहा है। इसको लेकर समाज में जैसी चेतना होनी चाहिए, वैसी नहीं है, हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहने की स्थिति किसी भी देश में सुधार नहीं आ सकता। यह स्थिति बेहद चिंताजनक हैं, अगर लोग और शासन व्यवस्था ठान ले, तो परिस्थितियों में सुधार लाया जा सकता है।
उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का संकट लगातार गहराने का असर लोगों की औसत आयु पर भी पड़ा है. कुछ समय पहले अमेरिका की शोध संस्था एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ने वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक जारी किया था| इसमें उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में रह रहे लोगों की औसत आयु लगभग सात वर्ष तक कम होने की आशंका जतायी गयी थी। रिपोर्ट के अनुसार, कई राज्यों के कई जिलों में लोगों का जीवनकाल घट रहा है| विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुछ समय पहले एक और गंभीर तथ्य की ओर इशारा किया था कि भारत में 34 प्रतिशत मौत के लिए प्रदूषण जिम्मेदार है।
ये आंकड़े किसी भी देश- समाज के लिए बेहद चिंताजनक हैं| विश्व स्वास्थ्य संगठन का आकलन है कि प्रदूषण के कारण हर साल दुनियाभर में 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जिसमें 24 लाख लोग भारत के हैं। दरअसल वायु प्रदूषण पूरे भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है| संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का बुनियादी अधिकार है और कोई भी समाज पर्यावरण की अनदेखी नहीं कर सकता है। लॉक डाउन के कारण प्रकृति ने अपनी अमूल्य भेंट हमें फिर से दी है। भोपाल तो अपने पर्यावरण के कारण विश्व में चर्चित था, भोपाल गैस त्रासदी और बढती जन संख्या ने इसकी नैसर्गिकता को निगलना शुरू कर दिया, ताल, तलैयों और शैल शिखरों के नगर में गगनचुम्बी इमारतें उगने लगी। भोपाल की सुबह को प्रकृति अब भी वरदान दे रही, थोड़ी खिड़की सुबह खोलिए तो।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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