जब कोई पुलिस अधिकारी किसी अपराध में एफआईआर दर्ज करता है तो उसका अन्वेषण करता है एवं न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए पूरी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट तैयार करता है जिसे चार्जशीट कहा जाता है। हमने आपको बताया था कि पुलिस इन्वेस्टिगेशन के दौरान पुलिस की चार्जशीट, बयान को बताया नहीं जाता है, लेकिन जब पुलिस इन्वेस्टिगेशन पूरी हो जाती है तब मजिस्ट्रेट, आरोपी को वह सभी दस्तावेज उपलब्ध करा देता है जो पुलिस ने चार्ज शीट में प्रस्तुत किए हैं। जानते हैं वो कौन कौन से होंगे।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 207 की परिभाषा:-
कोई भी ऐसा मामला जो पुलिस रिपोर्ट के आधार पर संस्थित किया गया है, तब मजिस्ट्रेट आरोपी व्यक्ति को बिना विलम्ब किए एक प्रतिलिपि निःशुल्क देगा जो निम्न होगी:-
1. पुलिस रिपोर्ट(चार्जशीट) की कॉपी।
2. एफआईआर की कॉपी।
3. पुलिस अधिकारी द्वारा साक्षियो से लिए गए बयान, कथन आदि कॉपी।
4. मजिस्ट्रेट द्वारा ली गई कोई लेखबद्ध स्वीकृतियां या कथन की कॉपी।
5. ऐसे कोई साक्ष्य जो मजिस्ट्रेट को पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट द्वारा भेजे गए हैं या कोई सामग्री आदि।
नोट:- कोई कथन ऐसे हैं जो न्यायालय के विचारण में प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं तब मजिस्ट्रेट अपनी इच्छानुसार जैसा वह ठीक समझे आरोपी को दे भी सकता है, नहीं भी दे सकता है।
• अगर कोई दस्तावेज या सामग्री बड़ी है जो आरोपी को नहीं दी जा सकती है तब आरोपी या उसका वकील न्यायालय में आकर उसका निरीक्षण कर सकते हैं।
{इस धारा का उद्देश्य यह है कि आरोपी को पता होना चाहिए कि उस पर किस अपराध का अभियोजन चलाया जा रहा है एवं वह अपने बचाब पक्ष में क्या करना चाहता है।} :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com
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