यह तो सभी जानते हैं कि समुद्र मंथन के समय जब जहर निकला तो भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। इसीलिए उन्हें नीलकंठ कहा जाता है। हम आपको बताते हैं कि उस जहर को कंठ में धारण करने के बाद भगवान शिव कहां गए और किस तरह उन्होंने कंठ में रखे हुए जहर यानी मृत्यु पर विजय प्राप्त की।
एक पर्वत जहां जहर का प्रभाव नहीं होता
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच विंध्याचल की पर्वतमाला के अंतर्गत पांच पर्वत (मईफ़ा पर्वत, फ़तेहगंज पर्वत, पाथर कछार पर्वत, रसिन पर्वत एवं बृहस्पति कुण्ड पर्वत) के मध्य स्थित है वह पर्वत जहां कंठ में विष धारण करके भगवान शिव स्वयं पधारे थे। यहां पर भगवान शिव ने कंठ में स्थित जहर को योग एवं वन औषधियों की सहायता से समाप्त कर दिया था। यानी काल पर विजय प्राप्त कर ली थी। इसीलिए इस पर्वत को अब कालिंजर पर्वत के नाम से जाना जाता है। कालिंजर का अर्थ होता है ‘ कल को जर्जर करने वाला‘।
वह स्थान जहां भगवान शिव ने जहर को जर्जर करने के लिए योग साधना की थी
इस पर्वत पर एक किला बना हुआ है जिसे कालिंजर का किला कहा जाता है। किसने बनाया कोई नहीं जानता। इतिहास में केवल यह लिखा है कि कितने राजाओं का आधिपत्य इसके लिए पर रहा है। इसी किले में एक स्वयंभू शिवलिंग (नीलकंठ मंदिर) मौजूद है। शिवलिंग के ऊपर एक प्राकृतिक जल स्त्रोत है। अतः स्वयंभू शिवलिंग का प्राकृतिक जल अभिषेक होता रहता है। कहते हैं इसी स्थान पर भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किए हुए जहर को जर्जर कर दिया था। क्योंकि यहां बहुत अधिक पर्यटक नहीं आते इसलिए इस पहाड़ पर आज भी कई दुर्लभ जड़ी बूटियां मिल जाती हैं।
HOW TO REACH KALINJAR FORT
यदि आप फ्लाइट से आना चाहते हैं तो उत्तर प्रदेश में कानपुर और मध्य प्रदेश में खजुराहो एयरपोर्ट सबसे नजदीक रहेगा। यहां से सड़क मार्ग के द्वारा कालिंजर के किले तक पहुंच सकते हैं।
यदि आप रेल मार्ग से आना चाहते हैं तो उत्तर प्रदेश में बांदा रेलवे स्टेशन और मध्यप्रदेश में सतना रेलवे स्टेशन सबसे नजदीक रहेगा। आप मध्य प्रदेश के खजुराहो रेलवे स्टेशन से भी कालिंजर का किला पहुंच सकते हैं।
यदि आप मध्यप्रदेश के पन्ना अथवा चित्रकूट कि रास्ते आना चाहते हैं तो यह सड़क मार्ग भी अच्छा विकल्प है।
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