बड़ा अजीब बयान आया है हरियाणा के गृहमंत्री का कि “पुलिस के द्वारा व्यक्तिगत सुरक्षा कर पाना संभव नहीं है। तो सवाल यह है कि शासन-प्रशासन का संवैधानिक दायित्व क्या है ?” ऐसे संवेदन शील मामले में ऐसा असंवेदनशील बयान देने के बदले में मंत्री जी को इस्तीफा दे देना चाहिए था या इस बयान के बाद उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त कर देना चाहिए था। बल्लभगढ़ में बी.कॉम. अंतिम वर्ष की छात्रा के अपहरण की कोशिश के बाद दिनदहाड़े हुई हत्या कानून व्यवस्था के प्रति अपराधियों के बेखौफ होने को दर्शाती है।
यह घटना जहां अपराधी के निरंकुश व्यवहार को दर्शाती है, वहीं पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है। इस छात्रा के अपहरण की कोशिश दो वर्ष पूर्व भी हुई थी। यदि इस मामले में सख्त कार्रवाई होती तो शायद छात्रा आज जिंदा होती। शासन-प्रशासन का संवैधानिक दायित्व बनता है कि व्यक्ति विशेष के जीवन पर आने वाले किसी भी खतरे से उसकी रक्षा की जाये। खासकर लड़कियों की शिक्षण संस्थाओं के बाहर तो सुरक्षा इंतजाम ऐसे होने चाहिए कि बेटियां सिरफिरे आशिकों से अपनी रक्षा करने में सक्षम हो सकें।
यहाँ सवाल समाज में पनप रही आपराधिक मनोवृत्ति का भी है कि क्यों और कैसे पथभ्रष्ट युवा हाथरस, होशियारपुर और बल्लभगढ़ जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं और बेकसूर बेटियों को उनकी क्रूरता का शिकार बनना पड़ रहा है। हाल ही में आये एक सर्वेक्षण में इस बात का खुलासा हुआ था कि समाज में बेटियों के प्रति सकारात्मक सोच विकसित हो रही है। अभिभावक अब बेटियों के परिवार में आने का स्वागत कर रहे हैं और बिना किसी भेदभाव के उनका बेहतर ढंग से भरणपोषण कर रहे हैं। बेटियों के प्रति लगातार बढ़ रहे अपराधों से उनका उत्साह कम हो सकता है। इन आशंकाओं को दूर करना शासन-प्रशासन का दायित्व बनता है।
देश के सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस में यौन हिंसा की शिकार हुई युवती को न्याय दिलाने की दिशा में सार्थक पहल की है। शीर्ष अदालत ने आदेश दिया है कि हाथरस कांड मामले में सीबीआई की जांच की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट करेगा। हाईकोर्ट मामले की जांच के बाद फिर तय करेगा कि केस का स्थानांतरण उत्तर प्रदेश से दिल्ली किया जाये या नहीं ,इसके साथ ही पीड़िता के परिजनों व गवाहों की सुरक्षा पर भी उच्च न्यायालय ध्यान देगा। दरअसल, इस सारे प्रकरण में प्रदेश सरकार की कारगुजारियों के मद्देनजर पीड़ित परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि मामले का ट्रायल दिल्ली में हो। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. ए. बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने एक जनहित याचिका व वकीलों की ओर से दायर हस्तक्षेप याचिकाओं पर पंद्रह अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। आशंका जतायी जा रही थी कि उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष सुनवाई की संभावना कम है। जांच को बाधित करने के आरोप लगाये गये थे। ऐसी आशंकाएं १४ सितबंर को यौन हिंसा की शिकार युवती के शव का आनन-फानन में परिवार की गैर मौजूदगी में रात में अंतिम संस्कार करने के बाद जतायी जा रही थी।
इस सारे प्रकरण से उत्तर प्रदेश पुलिस व शासन सवालों के घेरे में आ गया था। इस मामले में भारी राजनीतिक विरोध के बाद योगी सरकार ने मामले की जांच पहले एसआईटी को सौंपी थी और बाद में जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की गई।समय की मांग है बेटियों के खिलाफ होने वाली हिंसा को रोकने के लिये पुलिस-प्रशासन को संवेदनशील व जवाबदेह बनाने की जरूरत है। वहीं समाज को भी भुत कुछ करने की जरूरत है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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