ग्वालियर। राष्ट्रीय ध्वज किसी भी देश की प्रमुख पहचान होती है. देश भर के शासकीय और गैर शासकीय कार्यालयों के साथ कई मंत्रालयों पर लहराने वाला तिरंगे झंडे ग्वालियर शहर में तैयार होते हैं. तिरंगों को ग्वालियर में स्थित देश का तीसरा और प्रदेश का इकलौता मध्य भारत खाली खादी संघ बना रहा है. खास बात यह है जब भी देश के किसी कोने में तिरंगा फहराया जाता है तब ग्वालियर का जिक्र सभी की जुबान पर होता है.
यूं तो भारत की आजादी में ग्वालियर का प्रमुख योगदान रहा है. आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी ग्वालियर आजाद हिंदुस्तान की शान कहे जाने वाले तिरंगे का निर्माण करके अभी भी पूरे देश में अपना नाम रोशन किए हुए है. राष्ट्रीय ध्वज किसी भी देश की प्रमुख पहचान होती है. देश भर के शासकीय और गैर शासकीय कार्यालयों के साथ कई मंत्रालयों पर लहराने वाला तिरंगे झंडे ग्वालियर शहर में तैयार होते हैं.
आईएसआई तिरंगे देश में हुगली, मुंबई और ग्वालियर के केंद्र में ही बनाए जाते हैं. खादी केंद्र की मैनेजर का कहना है कि किसी भी आकार के तिरंगे को तैयार करने में उनकी टीम को 5 से 6 दिन का समय लगता है. इन दिनों यूनिट में 15 अगस्त के लिए तिरंगे तैयार किए जा रहे हैं. यहां बनने वाले तिरंगे मध्य प्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित एक दर्जन से अधिक राज्यों में पहुंचाए जाते हैं, हमारे लिए गौरव की बात तो यह है कि देश के अलग-अलग शहरों में स्थित आर्मी की सभी इमारतों पर ग्वालियर में बने तिरंगे की शान बढ़ाते हैं.
साथ ही उनका कहना है कि यहां जो तिरंगे तैयार किए जाते हैं उसका धागा भी हाथों से इसी केंद्र में तैयार किया जाता है. वर्तमान में यहां तीन कैटेगरी में तिरंगे तैयार किए जा रहे हैं. मैनेजर के अनुसार अभी 2 बाय 3 से 6 बाई 4 तक के झंडे बनाए जा रहे हैं. इस केंद्र में एक साल में लगभग 10 से 12 हजार खादी के झंडे तैयार किए जाते हैं.
खादी केंद्र के पदाधिकारी बताते हैं कि इस केंद्र की स्थापना साल 1925 में चरखा संघ के तौर पर हुई थी. साल 1956 में मध्य भारत खादी संघ को आयोग का दर्जा मिला. इस संस्था से मध्य भारत के कई प्रमुख राजनितिक हस्तियां भी जुड़ी रही हैं
खादी केंद्र के पदाधिकारी का मानना है कि किसी भी खादी संघ के लिए तिरंगे तैयार करना बड़ी मुश्किल का काम होता है क्योंकि सरकार की अपनी गाइडलाइन है उसी के अनुसार तिरंगे तैयार करने होते हैं. यही कारण है कि जब यहां तिरंगे तैयार किए जाते हैं तो उनकी कई बार बारीकी से मॉनिटरिंग करनी पड़ती है.
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