देश का माहौल कभी ऐसा भी होगा, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी | देश में परस्पर विश्वास की कमी होती जा रही है | यही परस्पर विश्वास तो भारत की पूंजी है | इस परस्पर विश्वास को कायम रखना सिर्फ सरकार या प्रतिपक्ष का काम नहीं हर नागरिक की जिम्मेदारी है | केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की कुछ ज्यादा, क्योंकि ये सरकारें नागरिकों की अभय रहने का वचन देकर सत्ता में आई हैं | दोनों घटनाओं पर पर सरकार को कुछ करना चाहिए | चाहे जबलपुर में घटी “जमेटो” एप के जरिये खाना मंगाने का मामला हो या आन्ध्र के का मामला| “अविश्वास” इनका मूल है | समाज में ये क्यों होरहा है और कैसे रुकेगा ? शोध का नहीं कार्यवाही का विषय है | केंद्र में प्रधानमंत्री, और राज्यों के मुख्यमंत्री जनता को बताएं वे इन विषयों पर क्या कर रहे हैं ?
पहले मध्यप्रदेश | वैसे फूड डिलीवरी एप जोमैटो (Zomato) लगातार किसी न किसी वजह से सुर्खियों में रहता है| लेकिन, इस बार चर्चा में रहने की वजह कुछ और है| एक शख्स जिनका नाम पंडित अमित शुक्ला है उन्होंने जोमैटो के जरिए खाना ऑर्डर किया था| जब उन्होंने देखा कि डिलीवरी ब्वॉय हिंदू नहीं है तो उन्होंने फोन कर कहा कि वह डिलीवरी ब्वॉय को बदले, नहीं तो उन्हें ऑर्डर कैंसिल करना पड़ेगा| इसपर जोमैटो ने डिलीवरी ब्वॉय बदलने से इनकार कर दिया साथ ही ऑर्डर कैंसिल करने और रिफंड करने से भी मना कर दिया गया| पंडित शुक्ला ने उनसे कहा कि आप मुझे डिलीवरी लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं|जिसपर जोमैटो ने रिट्वीट कर कहा कि, “खाने का कोई धर्म नहीं होता है, यह अपने आप में एक धर्म है|” अब तक इस ट्वीट को २० हजार से ज्यादा रिट्वीट और ५८ हजार से ज्यादा लाइक मिल चुके हैं| ७ हजार लोगों ने कमेंट भी किया है| इन कमेंट्स के जूठा खाना देना, खाने के साथ एक धार्मिक मान्यता के अनुरूप खाने पर लानत भेजने और खाने में थूकने जैसे अमानवीय कृत्य भी लिखे गये हैं | माजिद मेमन जैसे वकील खाना न लेने को राष्ट्र द्रोह मानकर मुकदमा करने की सरकार को सलाह दे रहे हैं |
दूसरी दुर्घटना आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में एक पुलिस स्टेशन पर कुछ लोगों ने अचानक हमला बोलने और सब इंस्पेक्टर और पुलिस कॉन्स्टेबल को पुलिस थाने के भीतर बुरी तरह से पीटने की है |लोग इसलिए नाराज और गुस्से में थे क्योंकि सब इंस्पेक्टर ने तीन लोगों को रापुरु पुलिस स्टेशन पूछताछ के लिए बुलाया था और उन्हें पीटा था|
दोनों ही घटना आपा खोने की है | कहीं व्यक्ति आपा खो रहा है, कहीं समाज | किसे राष्ट्रद्रोह माने और किसे नहीं, बड़ा सवाल है | दोनों के पृष्ठ भूमि में अक्षम्य क्रियाएं हैं, उनकी प्रतिक्रिया को तूल दिया जा रहा है | इनकी निरन्तरता और दोहराव समाज को उस मुहाने पर ले जाकर खड़ा कर देगी जिसका भविष्य अच्छा नहीं दिख रहा है | सरकारें चाहे तो ये घटनाएँ रुक सकती है, उन्हें अपने वोट बैंकों की चिंता छोड़ना होगी | देश की चिंता करना होगी, यही सबसे बूढी सवा सौ बरस की कांग्रेस और विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहाने वाली भाजपा का धर्म होना चाहिए | वे मानें तो |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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