
क्यों बनते हैं ये निशान:- शरीर के अन्य अंगों की तरह टांगों को भी ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। यह ऑक्सीजन धमनियों (आर्टरीज) में प्रवाहित शुद्ध खून के जरिये पहुंचायी जाती है। टांगों को ऑक्सीजन देने के बाद यह ऑक्सीजनरहित अशुद्ध रक्त शिराओं (वेन्स) के जरिये वापस टांगों से ऊपर फेफड़े की तरफ शुद्धीकरण के लिये ले जाया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि ये शिराएं टांगों के ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण करती हैं। शिराओं की कार्यप्रणाली अगर किसी कारण से शिथिल हो जाती है, तो टांग व पैर का ड्रेनेज सिस्टम चरमरा जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि अशुद्ध खून ऊपर चढ़कर फेफड़े की ओर जाने की बजाय टांगों के निचले हिस्से में इकज्ञ होने लगताहै। फिर शुरू होता है पैरों में सूजन और काले निशानों का उभरना। अगर समय रहते इनका समुचित इलाज किसी वैस्क्युलर सर्जन से नहीं कराया गया, तो टांगों में उभरे काले निशान धीरे-धीरे और गहरे व आकार में बढ़ते जाते हैं, जो अंततः लाइलाज घावों में परिवर्तित हो सकते हैं।
कारण:- सीवीआई के पनपने के कई कारण हैं। इनमें सबसे ज्यादा प्रमुख हैं डीप वेन थ्रॉम्बोसिस यानी डीवीटी। इस रोग में टांगों की (शिराओं) में रक्त के कतरे जमा हो जाते हैं। ये कतरे बीमारी के बाद अक्सर पूरी तरह गायब नहीं हो पाते और अगर कुछ हद तक गायब हो भी जाते हैं, तो भी वेन के अंदर स्थित कपाटों को नष्ट कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि शिराओं के जरिये अशुद्ध खून के ऊपर चढ़ने की प्रक्रिया बुरी तरह से बाधित हो जाती है। डीवीटीके कुछ रोगियों में खून के कतरे शिराओं के अंदर स्थायी रूप से मौजूदरहते हैं।
व्यायाम न करना:- सीवीआईका दूसरा प्रमुख कारण व्यायाम न करने और पैदल कम चलने से संबंधित है। रोजाना पैदल कम चलने से या टांगों की कसरत न करने से टांगों की मांसपेशियों द्वारा निर्मित पम्प (जो अशुद्ध खून को ऊपर चढ़ाने में मदद करता है) कमजोर पड़ जाता है। कुछ लोगों की शिराओं में स्थित कपाट (वाल्व) जन्म से ही ठीक से विकसित नहीं हो पाते, ऐसे रोगियों में सीवीआई के लक्षण कम उम्र में ही प्रकट होने लगते हैं।
जांचें:- काले निशानों का कारण जानने के लिए वेन्स डॉप्लर स्टडी, एमआर. वेनोग्राम, व कभी-कभी एंजियोग्राफी का सहारा लिया जाता है। रक्त की जांचें भी करायी जाती हैं।
इलाज:- इन विशेष जांचों के आधार पर ही सीवीआई के इलाज का निर्धारण किया जाता है। ज्यादातर रोगियों में दवा देने से और विशेष व्यायाम करने से राहत मिल जाती है, लेकिन कुछ रोगियों में ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ती है। मौजूदा दौर में वेन्स वाल्वोप्लास्टी, एक्सीलरी वेन ट्रांसफर या वेन्स बाईपास सर्जरी जैसी आधुनिकतम तकनीकों की मदद से रोग को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
टांग व कमर के चारों ओर कसे हुए कपड़े न पहनें। पुरुष टाइट अंडरवियर व महिलाएं टाइट पैन्टी न पहनें। कमर बेल्ट टाइट न बांधें। टाइट बेल्ट खून की वापसी में रुकावट डालती है।
ऊंची एड़ी के जूते व सैंडल का इस्तेमाल न करें। नीची एड़ी वाले जूते टांगों की मांसपेशियों को हमेशा क्रियाशील रखते हैं। यह स्थिति वेन्स व टांगों के ड्रेनेज सिस्टम के लिए लाभदायक है।
जॉगिंग, एरोबिक्स या ऐसा कोई उछल-कूद वाला व्यायाम न करें, जिसमें पैर के घुटनों पर बार-बार झटके लगें। इस तरह के व्यायाम वेन्स को फायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं। बगैर झटके वाले, पैर उठाने वाले और टांगें मोड़ने वाले व्यायाम वेन्स के लिये लाभप्रद हैं।
ऐसी शारीरिक मुद्रा(पोस्चर्स) से बचें, जिसमें लंबे समय तक बैठना या खड़े रहना पड़ता हो। ऑफिस में या घर पर एक घंटे से ज्यादा वक्त तक न तो पैर लटकाकर बैठे रहें और न ही लगातार खड़े रहें। इस तरह की स्थितियों में एक घंटा पूरा हो जाने पर पांच मिनट का अंतराल लें। इस अंतराल के दौरान दोनों पैरों को अपने सामने किसी स्टूल के सहारे ऊंचा रखें।
खाने में तेल व घी का प्रयोग बहुत कम मात्रा में करें। कम कैलोरी वाले और रेशेदार खाद्य पदार्थ वेनस के लिए लाभप्रद हैं।
अपने वजन पर नियत्रंण रखें। वजन कम करने से वेन्स पर पड़ने वाला अनावश्यक दबाव कम हो जाता है।
रात में सोते समय पैरों के नीचे एक या दो तकिये लगाएं जिससे पैर छाती से दस या बारह इंच ऊपर रहें। ऐसा करने से पैरों में ऑक्सीजनरहित खून के इकज्ञ होने की प्रक्रिया शिथिल पड़ जाती है जो सीवीआई रोग से ग्रस्त पैरों के लिये अत्यन्त लाभकारी है।
दिन के समय विशेष तकनीक से निर्मित दबाव वाली जुराबें टांगों में पहनें। इस संदर्भ में विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लें। सुबह बिस्तर से उठते ही इन विशेष जुराबों को अपनी टांगों पर चढ़ा लें और दिन भर पहने रखें। ये जुराबें पैरों में खून का प्रवाह बढ़ाती हैं और गुरुत्वाकर्षण से नीचे की तरफ होने वाले खून के दबाव को कम करती हैं। इस वजह से सीवीआई रोग को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
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