
संगठन में जान फूंकनी होगी
15 साल से सत्ता से दूर कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा कमजोर हो चुका है। संगठन की जान कहे जाने वाले दर्जनों प्रकोष्ठ बेजान पड़े हुए हैं। सेवादल, एनएसयूआई, महिला कांग्रेस जैसे सहयोगी दल प्रभावहीन हो चुके हैं। चुनाव में बूथ मैनेजमेंट तो दूर बूथ पर बैठने वाले कार्यकर्ता की फौज गायब हो चुकी है। चुनाव से जीत रहे कांग्रेस के विधायक, सांसद खुलकर स्वीकार करते हैं कि वे संगठन के दम पर नहीं अपनी निजी टीम के भरोसे चुनाव लड़ रहे हैं।
टीम का गठन सबसे बड़ी परेशानी
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कमलनाथ के पास सिर्फ डेढ़ महीने का समय बचा है। इस दौरान उन्हें प्रदेश संगठन खड़ा करना है। जिला और शहर संगठन में नई नियुक्तियां करनी है और नीचे तक संगठन की नींव को मजबूत करना है, खास तौर पर अल्पसंख्यक, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग के प्रकोष्ठ और महिलाओं के संगठन को। वे किस तरह निर्विवाद और सभी गुटों से तालमेल कर संगठन में नियुक्तियां करते हैं यह देखना होगा। यदि वो ऐसा नहीं कर पाए तो यह परिणाम सीधे चुनाव को प्रभावित करेंगे।
कांग्रेस में उठ रहे हैं सवाल
कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री कहते हैं कि कमलनाथ की राजनीतिक शैली अभी तक दिल्ली में पावर के इर्द-गिर्द चेंबर पॉलिटिक्स की रही है। स्वयं के लोकसभा क्षेत्र छिंदवाड़ा के अलावा पूरे प्रदेश में उन्होंने बहुत ही सीमित दौरे किए हैं। 71 साल की उम्र में क्या वे प्रदेश के दौरे कर पाएंगे? संगठन सक्रिय करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष को जरूरी होगा कि वे संभागीय, जिले और विधानसभा स्तर पर दौरे करें।
दिग्विजय की यात्रा का मैनेजेंट
माना जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान के साथ हुई बैठकों में यह तय किया गया है कि कमलनाथ को पूरा सहयोग दिग्विजयसिंह का रहेगा। दिग्विजय सिंह ने अपनी राजनीतिक यात्रा का ऐलान कर दिया है लेकिन क्या यह यात्रा दिग्विजय सिंह की निजी यात्रा होगी या कांग्रेस की यात्रा होगी। इसका स्वरूप प्रदेश संगठन को तैयार करना है। यात्रा संयोजक कौन होगा ? यह पूरे कांग्रेस की सर्वमान्य यात्रा किस तरह होगी इसका रास्ता भी ढूंढना होगा। हालांकि दिग्विजयसिंह के करीबी नेता पूर्व मंत्री महेश जोशी एवं रामेश्वर नीखरा इसका रोडमेप बनाने में जुट गए हैं। लेकिन चुनौती सिंधिया समेत अन्य खेमों को इसमें जोड़ने की होगी। उल्लेखनीय है कि नर्मदा परिक्रमा में सिंधिया खेमा दूर था।
घर बैठे नेताओं को काम पर लगाना
एक पूर्व सांसद कहते हैं कि पिछले तीन चुनावों में पूरी कांग्रेस का एक बिखरी हुई थी। सुरेश पचौरी अध्यक्ष बने तो दूसरे गुट घर बैठ गए। भूरिया सिंधिया मैदान में आए तो दूसरे अन्य गुटों ने औपचारिकता निभाई। ऐसे कई नेता है जो पूछ परख नहीं होने से घर बैठ गए हैं। उन्हें जिम्मेदारी सौंपना और काम देना अब नए प्रदेश अध्यक्ष पर है।
मध्यप्रदेश का भविष्य किसके हाथों में सुरक्षित है— Bhopal Samachar (@BhopalSamachar) April 28, 2018
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