बधाई हो न्यू इंडिया, तुम्हारा दलित दंगाई हो गया...


कवरेज इण्डिया न्यूज डेस्क।
राजनीति के फेर में दलितों के नाम पर जो खून सड़कों पर बहा है, उसका हिसाब देना होगा, चाहे इसके पीछे जो हों, हमारे देश के दलित कभी इस प्रकार की हरकत नहीं कर सकते, भीम को मानने वाले संविधान नहीं तोड़ते साहब

न्यू इंडिया कैसा हो? सवाल का जवाब अमूमन आप देंगे तो आपके सामने सुंदर शहर-गांव छवि उभरेगी। सड़कें साफ हों। ड्रेनेज-सिवरेज सिस्टम बढ़िया हो। हरियाली हो। बच्चों के लिए स्कूल। बुजुर्गों के लिए अस्पताल। खेल के मैदान। सुबह-शाम टहलने के लिए पार्क। बेहतर ट्रांसपोर्ट सुविधा। समेत तमाम वो चीजें, जो आपके जीवन को सरल बनाने में मदद करें। लेकिन, जब आपने सुबह को टीवी खोला होगा, न्यूज देखने के लिए। आपको एक बंद की तस्वीर दिखी होगी। सिर में हरी पट्‌टी बांधे, जय भीम के नारों के साथ। लोगों की गाड़ियों को तोड़ते-फूंकते। झगड़ते-लड़ते, मारते, पीटते-पिटाते। आपने पहली चीज क्या सोची होगी? ये देश में हो क्या रहा है? मेरे मन में आया- बधाई हो इंडिया, तुम्हारा दलित दंगाई हो गया। जिस दलित सशक्तिकरण का बाबासाहेब डा. भीमराव अंबेडकर सपना देखते थे, शायद वह सशक्तिकरण यही था।

न्यू इंडिया के सपनों के बीच आई इन तस्वीरों ने विचलित कर दिया है। कसूर क्या था उस नन्हीं सी बच्ची का। शायद ठीक से वह अपना नाम भी नहीं बोल सकती है। उसे जाति, धर्म और एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आए आदेश की क्या जानकारी? अधिकारों की अंधी दौड़ में दौड़ रहे अंधभक्तों की आंधी में कुचल गई। उस ऑटो वाले का क्या कसूर? वह भी दलित ही था। अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा था। बच्ची और उसकी मां को गंतव्य तक लेकर जाने का कर्तव्य। अपने बच्चों को दो जून रोटी खिलाने का कर्तव्य। उसे तो यह भी नहीं पता कि सुप्रीम कोर्ट ने किस विषय पर क्या निर्णय दिया? बंद समर्थकों ने उसके ऑटो पर मुजफ्फरपुर के माड़ीपुर में हमला बोल दिया। लाठी-डंडे खूब बरसाए। तब यह नहीं सोचा, पिटने वाली किस जाति का है। यह भीड़ का उन्माद था, जिसे हर हाल में बंद को सफल दिखाना था।

ऑटो में सवार इस चार-पांच साल की बच्ची के सिर पर लाठी लग गई। सिर फूट गया। खून बह निकली। मां ने उसे रोकने के लिए रुमाल का सहारा लिया। लेकिन, उस नन्हीं जान का घाव खून देना बंद नहीं किया। इन जालिम दंगाइयों का जुल्म तब भी नहीं रुका। सुन रहे हैं न सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस महोदय, आपके एक फैसले ने उस बच्ची के सिर पर जातिवाद का घाव दे दिया है। ताउम्र वह नहीं भरने वाला। उसकी मां को भी पीटा गया। ऑटो ड्राइवर को भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, कसूरवार आप भी हैं। इन दंगाइयों को रोकने के लिए आपकी ओर से कदम नहीं उठाया गया। न बिहार में, न मध्य प्रदेश में और न ही राजस्थान में।

मैंने जब मुजफ्फरपुर के माड़ीपुर की घटना के बारे में जानकारी जुटाई तो मुझे आश्चर्यजनक तथ्य हाथ लगे। वहां लाठी चलाने वालों एससी-एसटी कम्युनिटी का कोई नहीं था। जो भी अगुआ थे, एक विशेष राजनीतिक पार्टी से ताल्लुक रखने वाले। भारत बंद को उन्होंने अपनी ताकत के प्रदर्शन के रूप में इस्तेमाल किया। स्थानीय प्रशासन ने भी उन्हें छूट दे दी। यकीन मानिए, भीम के नाम गुंडई बाबासाहेब को मानने वाले कर ही नहीं सकते हैं। क्योंकि, भीम को मानने वाले संविधान नहीं तोड़ते। हमारे देश का दलित सभ्य है, अपने अधिकारों की बात तो करता है, लेकिन उसके लिए खून नहीं बहा सकता। वह बाबासाहेब के संविधान से बाहर नहीं जाता।

दलितों की आड़ में जिन लोगों ने खूनी खेल खेला है, नरेंद्र मोदी जी, नीतीश कुमार जी, शिवराज सिंह चौहान जी, वसुंधरा राजे जी, रघुवर दास जी, कृपया उनका पता लगवाइए। जय भीम का नारा लगाकर भीम को बदनाम करने वालों को सलाखों के पीछे डालिए। क्योंकि, दलितों के नाम पर गुंडई करने वालों को छोड़ा तो वे इनके नाम पर आगे भी इसी प्रकार का उत्पात मचाएंगे। जय भीम का नारा लगाकर बाबासाहेब के संविधान की धज्जियां उड़ाएंगे। इसी प्रकार बच्ची का सिर फूटेगा। सुप्रीम के चीफ जस्टिस महोदय, मुझे यकीन है आप इस प्रकार वारदात आगे भी होता देखना बिल्कुल नहीं चाहेंगे। क्योंकि, हम सबको न्यू इंडिया अपने सपनों वाला चाहिए, ये रक्तरंजित नहीं।