नई दिल्ली। भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में ऐलान किया है कि कश्मीर में धारा 370 हटाई जा रही है। कश्मीर अब भारत के अन्य राज्यों की तरह एक राज्य हो गया है। विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो गया है लेकिन बड़ा प्रश्न यह है कि जो काम 70 साल तक असंभव था वो संभव कैसे हुआ। इसके पीछे क्या खास रणनीति थी। यहां हम आपको उसी रणनीति के बारे में बताने जा रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर में मौजूदा समय में लगा राज्यपाल शासन अहम कड़ी साबित हुआ। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था। राष्ट्रपति के आदेश के साथ ही अब संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर भी लागू होंगे। सोमवार को राज्यसभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अधिसूचित आदेश में कहा गया कि संविधान के सभी प्रावधान, समय-समय पर संशोधित होते हैं।
दरअसल मौजूदा समय में जम्मू-कश्मीर में कोई भी निर्वाचित सरकार नहीं है। वहां राज्यपाल शासन है और सत्यपाल मलिक राज्यपाल हैं। राष्ट्रपति के आदेश में कहा गया है कि राज्यपाल निर्वाचित सरकार की शक्तियों का प्रयोग करेंगे और अनुच्छेद 370 के संबंध में राष्ट्रपति को सिफारिश करने में राज्य विधायिका की इच्छा को व्यक्त करेंगे।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के इस आदेश का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि इसमें 'संविधान सभा' शब्द में संशोधन किया गया है, जिसका अर्थ अब राज्य की 'विधान सभा' है। अनुच्छेद 370 के बाद से ये संशोधन आवश्यक था, इसके उप-खंड (3) में, यह निर्धारित किया गया है कि अनुच्छेद 370 राष्ट्रपति के आदेश के बाद काम करना बंद कर सकता है, लेकिन उससे पहले 'संविधान सभा' की सिफारिश उनके पास गई हो।
आदेश के मुताबिक राज्यपाल को विधानसभा का अधिकार दिया गया और फिर संविधान सभा का अर्थ विधानसभा में बदल दिया गया। इसका मतलब यह है कि राष्ट्रपति, राज्यपाल द्वारा दी गई सिफारिश पर ये आदेश जारी कर सकता है।
हालांकि राज्य इस समय राज्यपाल के अधीन है, इसलिए राज्य विधानमंडल की सभी शक्तियां वर्तमान में भारत की संसद के पास निहित हैं। इस तरह से अनुच्छेद 370 के खात्मा एक साधारण बहुमत द्वारा संसद के दोनों सदनों द्वारा सहमति के साथ राष्ट्रपति के आदेश द्वारा किया जा सकता है। इसके बाद राज्यपाल से बस इस पर सहमति ली जा सकती है।
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