भोपाल। भाजपा के लिए यह खबर किसी संजीवनी से कम नहीं है लेकिन दिग्विजय सिंह की टीम के लिए बड़ा झटका। मध्यप्रदेश की कांग्रेस में परमपूज्य की गद्दी तक जा पहुंचे दिग्विजय सिंह से सवर्ण समाज अब भी नाराज है। 2003 के दलित ऐजेंडे का जवाब 2019 में दिया जा रहा है। सवर्ण समाज शायद यह समझा रहा है कि जनता की याददाश्त कमजोर नहीं होती।
ऐसा क्या हो गया जो हायतौबा मच रही है
भोपाल लोकसभा से टिकट फाइनल होते ही दिग्विजय सिंह का 'हिंदू' बड़ा आकार लेने लगा था। कुछ मुसलमान नेताओं ने भी प्रमाणित किया कि दिग्विजय सिंह 'बड़े हिंदू' हैं। उनके अपने बेटे ने बताया कि वो कितनी पूजा पाठ करते हैं। हालांकि दिग्विजय सिंह अब तक 'हिंदू' का अस्तित्व ही नकारते आए हैं, वो खुद को वैष्णव बताते हैं लेकिन टिकट मिला तो 'हिंदू' आकार लेने लगा लेकिन दिग्विजय सिंह की इस मुहिम पर रविवार को बड़ा वज्रपात हुआ है। दशहरा मैदान में सवर्ण समाज के कार्यक्रम आयोजन किया गया था। दिग्विजय सिंह मुख्य रूप से उपस्थित थे परंतु सवर्ण समाज के लोग नहीं आए। सवर्ण समाज के अवसरवादी नेता जरूर उपस्थित थे परंतु समाज के लिए सुनिश्चित की गईं कुर्सियां खाली थीं।
सवर्ण समाज दिग्विजय सिंह से क्यों नाराज है
दिग्विजय सिंह को मध्यप्रदेश में जातिवाद का बीज बोने वाला और शिवराज सिंह को जातिवाद का कटीला झाड़ बनाने वाला माना जाता है। 2003 में थोकबंद वोटिंग के लिए दिग्विजय सिंह में 'दलित ऐजेंडा' पर काम किया। सरकारी सेवाओं में प्रमोशन में आरक्षण का नियम दिग्विजय सिंह ने ही बनाया था जिसके हाईकोर्ट में अवैध करार दिए जाने के बाद शिवराज सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। सन् 2002 और 2003 में दिग्विजय सिंह के 'दलित एजेंडा' के कारण सवर्ण समाज पर जो कानूनी कहर टूटा, उसे लोग आज भी भूल नहीं पाए हैं।
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