देश के लगभग सभी बैंक गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की समस्या से जूझ रहे हैं। दिसंबर 2017 तक बैंकों का एनपीए 8.99 ट्रिलियन रुपये हो गया था जो कि बैंकों में जमा कुल धन का 10.11 प्रतिशत है। कुल एनपीए में से सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों का एनपीए 7.77 ट्रिलियन है। यह दिन-रात बढ़ रहा है। इसके विपरीत भारत सरकार इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति और नीति को नहीं खोज सकी है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन इसके लिए पूर्व यूपीए सरकार को जिम्मेदार मानते हैं तो नीति आयोग ने रघुराम राजन की तरफ ही ऊँगली उठाई है। इस अंतहीन वाद विवाद का निष्कर्ष संसद की प्राककलन समिति की रिपोर्ट के बाद निकला तो बहुत देर हो जाएगी।
फ़िलहाल भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बढ़ते गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) को लेकर संसद की समिति को भेजा जवाब और नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार की टिप्पणी चर्चा में है। अपने जवाब में रघुराम राजन ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने अपने जवाब में कहा है कि घोटालों और जांच की वजह से सरकार के निर्णय लेने की गति धीमी होने की वजह से एनपीए बढ़ते गए।
वरिष्ठ भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की प्राक्कलन समिति ने राजन को पत्र लिखकर समिति के सामने उपस्थित होकर एनपीए के मुद्दे पर जानकारी देने को कहा था। अपने जवाब में राजन ने कहा है कि बैंकों द्वारा बड़े कर्जों पर यथोचित कार्रवाई नहीं की गई और 2006 के बाद विकास की गति धीमी पड़ जाने के बाद बैंकों की वृद्धि का जो आकलन था वो अवास्तविक हो गया। इससे पहले पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमण्यम ने एनपीए संकट को पहचानने और इसका हल निकालने का प्रयास करने के लिए समिति के सामने राजन की प्रशंसा की थी। सुब्रमण्यम ने समिति को बताया था कि एनपीए की समस्या को सही तरीके से पहचानने का श्रेय पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को जाता है और उनसे बेहतर यह कोई नहीं जानता कि आखिर देश में एनपीए की समस्या कैसे इतनी गंभीर हो गई। इसके अलावा सुब्रमण्यम ने यह दावा किया था कि अपने कार्यकाल के दौरान राजन ने इस समस्या को हल करने की महत्वपूर्ण पहल की थी। जिसके बाद जोशी ने राजन को पत्र लिखकर समिति के सामने उपस्थित होने और उसके सदस्यों को देश में बढ़ते एनपीए के मुद्दे पर जानकारी देने को कहा था। जिसके जवाब में यह पत्र लिखा गया है।
इसके विपरीत नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन पर गंभीर आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि आर्थिक सुस्ती के लिए राजन की नीतियां जिम्मेदार हैं, नोटबंदी नहीं।उनका तर्क था कि राजन की नीतियों के कारण उद्योगों की हालत ऐसी हो गई कि वो बैंकों से कर्ज नहीं ले पा रहे थे, जिसने बैडलोन की मात्रा को बढ़ा दिया। उन्होंने आगे कहा कि नॉन पर्फार्मिंग एसेट्स (एनपीए) पर राजन की जो नीतियां थीं वो ही अर्थव्यवस्था को सुस्ती की तरफ ले गईं, न कि सरकार को मजबूरी में नोटबंदी का फैसला लेना पड़ा।
विवाद अंतहीन है, प्राक्कलन समिति की रिपोर्ट की दिशा और परिणाम सामने दिख रहे हैं और एन पी ए दिन रात बढ़ रहा है। कुछ करना जरूरी है तुरंत, नहीं तो इस देरी की भी जाँच के लिए कोई समिति या आयोग बनाना होगा।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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