भोपाल। बलात्कारी बाबा आसाराम को मरते दम तक जेल में बंद रखने का फैसला सुनाया गया है। यह मामला 2013 में सामने आया था, लेकिन यह पहला मामला नहीं था जो प्रकाश में आया हो। 1993 में गुजरात की एक मैग्जीन ने आसाराम के बारे में तथ्यपरक खुलासा किया था। गुजरात में उन दिनों कांग्रेस की सरकार थी। खुलासे की कोई जांच नहीं कराई गई। 1994 में इंदौर, मध्यप्रदेश के एक प्रतिष्ठित अखबार में आसाराम की करतूत छपी। अखबार के दफ्तर के बाहर हंगामा हुआ। आसाराम की करतूत उजागर करने वाली महिला पत्रकार जयश्री पिंगले को घेर लिया गया। धमकाया गया। मामला पुलिस तक भी पहुंचा। मप्र में भी कांग्रेस की सरकार थी। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। सरकार ने इस खबर की भी जांच नहीं कराई। बस आसाराम के गुर्गों से महिला पत्रकार की रक्षा करके मामला दबा दिया गया। यदि उसी समय खुफिया ऐजेंसियां जांच कर लेतीं तो ना जाने कितनी लड़कियां बच जातीं और पापी आसाराम उसी समय सलाखों के पीछे होता।
पढ़िए महिला पत्रकार जयश्री पिंगले की कलम से उस घटनाक्रम की कहानी
महिला पत्रकार जयश्री पिंगले लिखतीं हैं इस घटना को करीब 24 साल हो गए। मैं तब इंदौर के एक बड़े अखबार में संवाददाता थी। एक दिन एक सोर्स मुझसे मिलने आया, उसके पास गुजराती पत्रिका थी, जिसमें आसाराम के सैक्स स्केंडल और अपराधिक हथकंडों की एक खोजपरक रिपोर्ट थी। उसने दावा किया कि ऐसे ही मामले इंदौर में भी हैं। एक परिवार तो बात भी कर सकता है। उनकी मांग बस यह है कि उनके नाम उजागर नहीं होने चाहिए।
उस वक्त अखबार के संपादक ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इसकी जांच परख करने को कहा। मैं उस सोर्स के साथ इंदौर की एक पॉश कॉलोनी में उस परिवार से मिलने गई। वे ठीक-ठाक कारोबारी लोग लग रहे थे। मैं जैसे ही उनके घर के अंदर पहुंची, मुझे वहां मनहूस सा सन्नाटा परसा दिखा। वहां किसी की मौत से भी बदतर माहौल लग रहा था। मुझे अकेले अंदर एक कमरे में भेजा गया, जहां एक महिला और उनकी बेटी बैठी थीं। महिला की उम्र लगभग चालीस-बयालीस साल थी और उनकी बेटी मुश्किल से सोलह-सत्रह साल।
गहरे अवसाद को चीरते हुए मां ने हिम्मत दिखाई। सबसे पहले मुझसे वादा लिया कि मैं उनका नाम उनकी बेटी का नाम कभी उजागर नहीं करूंगी। मैंने उन्हें भरोसा दिलाने के लिए बस इतना कहा- मेरा यकीन कीजिए। मैंने उस मां का हाथ अपने हाथ में थामा और कहा आप बताइए। सोचिए आप अपनी बहन से बात कर रही हैं। वह कुछ करीब आई और चंद ही सेकेंड्स में मेरी हथेली उसके आंसूओं से भर गई।
वह अपने दुपट्टे से आंसुओं से भीगे अपने गालों को पोंछती गई और उसके साथ बीती हुई काली रातों की परतें खोलती चली गई। उन्होंने बताया कि उनके परिवार का वक्त ने साथ छोड़ दिया था। परिवार का बिजनेस डूब गया था, पति शराबनोशी में जिंदगी बिता रहा था। दो बेटियां थी, जो जवान हो रही थीं। वह अपने परिवार और पड़ोसियों के कहने पर तब मशहूर कथावाचक रहे आसाराम के पास गईं थी। उस वक्त इंदौर में उनका काफी प्रभाव दिखता था।
महिला के मुताबिक, आसाराम ने पहली ही मुलाकात में बता दिया कि पति की शराब की लत और पैसों की तंगी से जूझ रही हो। यह पुड़िया लेकर जाओं चाय में पिला देना। पति 21 दिन में शराब छोड़ देगा और वाकई ऐसा ही हुआ। चंद दिनों में शराब छूट गई।
महिला ने बताया, 'इसके बाद आसराम बापू नियमित सत्संग करने को कहा। धीरे धीरे काम भी जमने लगा। करीब दो-तीन साल में ही हालात बदल गए। पूरा परिवार भक्त हो गया। हम खास सेवादार हो गए। उनके आश्रमों सहित देश के किसी भी हिस्से में उनका प्रवचन होता, तो हम उसमें जरूर जाते।
उन्होंने साथ ही बताया कि इसी दौरान आसाराम की करीबी सेवादार महिलाओं ने उनसे कहा कि 'बापू कृष्ण का रूप हैं और हम गोपियां। हमारे जीवन की बलाएं टालने के लिए, परिवार के सुख लिए बापू कोई खास प्रसाद भी दे सकते हैं। ये जिसे नसीब होता है, वह बहुत भाग्यशाली होती है. उसे सीधे मोक्ष मिलता है।
वह बताती है कि उन्हें ऐसी ही कई कहानियां सुनाई जाती और एक तरह से सबकुछ सौंपने के लिए तैयार किया गया। वह ऐसी अंधभक्ती थी कि उस वक्त कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। यह सिलसिला चलता रहा।
वह कहती हैं, 'मैं उस वक्त हिल गई जब मेरी बेटी ने हाल ही में मुझे बताया कि एक दिन दोपहर में उसके साथ भी ज्यादती हुई है। उसने बताया एक दिन सुबह के सत्संग के बाद उसे एक 'दीदी' ने कहा कि बापू याद कर रहे हैं। वह खुशी-खुशी वहां पहुंच गई। वहां आसाराम ने पिता और परिवार की खुशहाली के लिए भगवान का प्रसाद बताकर राधा और कृष्ण का स्वांग रचाया और उसके साथ भी ज्यादती की।
महिला ने कहा कि अपनी बच्ची की आपबीती सुनने के बाद से मैं अब तक संभल नहीं पाई हूं। पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई है। मैंने हिम्मत के साथ पूरा किस्सा पति को बताया। वे तो बदहवास हो गए, क्योंकि हमारे परिवार में भगवान की जगह बापू की तस्वीर है।
वह कहती हैं, 'हमने सत्संग में जाना बंद कर दिया। बापू की ओर से कई बुलावे आए, पर हम नहीं गए। इसके बाद कुछ करीबी महिलाएं भी मिलने आईं। उन्होंने कहा सब भूल जाओ। आने वाले समय में बहुत अच्छा होने वाला है लेकिन हम अपनी बेटी को खो चुके थे लेकिन आसाराम के इर्द-गिर्द श्रद्धा से जमी हुईं अपने समाज और देश की दूसरी औरतों को इससे बचना जरूरी है।
वह असहाय मां जब अपनी बात कह रही थी तब उसकी बेटी बेजान सी वहां पड़ी हुई थी। मैंने पूछा कि क्या यह बात करेगी? तो मां ने कहा- आप ही पूछ लीजिए। मैंने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया, लेकिन वह मुंह फेर कर अपना चेहरा दुपट्टे से छुपा लिया और वैसी ही बैठी रही।
भारी मन से मैंने वहां से विदा लिया, ऑफिस पहुंची और पूरी कहानी संपादक को बयां की। आखिर तय हुआ कि बहुत ही संतुलित तरीके से स्टोरी दी जाएगी, क्योंकि दोनों ही मां-बेटियां अधिकृत तौर पर बयान नहीं देंगी। फिर गुजराती पत्रिका में छपी रिपोर्ट का हवाला देकर इंदौर वाली घटना बयां की गई। जितना पता था उससे बहुत कम छापा, क्योंकि आसाराम की सल्तनत तब इंदौर में भी सर चढ़कर बोलने लगी थी।
1992 के उज्जैन सिंहस्थ के बाद उनका प्रभाव बढ़ गया था, उनके भक्तों की संख्या बढ़ गई थी। नेता, प्रशासन, मीडिया भीडतंत्र के आगे अपनी सीमाएं खींच लेते हैं। दूसरा महिलाओं का खुलकर सामने नहीं आना, ऐसे गुनाहगारों का काम और आसान कर देता है।
खैर वह स्टोरी अखबार के रविवारीय पेज पर छपी और रात होते-होते ऑफिस के बाहर आसाराम के भक्त ट्रकों और बसों में भरकर वहां आ गए। उन्होंने वहां खूब हंगामा किया, जिस कारण दफ्तर के बाहर पुलिस की तैनाती करवानी पड़ी। मैं उस रात तो अपने पुरुष सहकर्मी के साथ देर रात अपने दो पहिया वाहन पर घर पहुंच गई, लेकिन दूसरे दिन मुझे ऑफिस के बाहर घेर लिया गया.।आसाराम आश्रम के कुछ लोग पहुंच गए थे, जिनमें से कुछ के मैंने बयान लिए थे। कुछ बातों की पुष्टी की थी कि क्या यह परिवार बापू के करीबी था। पीडिताएं ने बताएं घटनाक्रम को उजागर किए बगैर कुछ क्रॉस चेक किया था। वे लोग मुझे धमकाने लगे। उन्होंने कहा, 'उन्हें नहीं पता था कि मैं इतनी घटिया और अनर्गल रिपोर्ट लिखने वाली हूं।' मैंने उन्हें किसी तरह समझाया कि हम उनकी तरफ से इस रिपोर्ट का खंडन भी छाप देंगे।
मैंने जैसे-तैसे पिंड छुड़ाया और ऑफिस पहुंचकर अपने संपादक और सहयोगियों को पूरी बात बताई। माहौल देखकर तय किया गया कि पुलिस प्रशासन की मदद ली जाए। ऑफिस की ओर से एसपी को बताया गया और मैं उस वक्त के एडिशनल एसपी प्रमोद फलणीकर से मिलने गई, तो उन्होंने मुझे सिक्यूरिटी गार्ड्स देने का आश्वास दिया। इसके बाद मेरी सुरक्षा में सादी वर्दी वाले कुछ पुलिस जवान तैनात कर दिए गए। हालांकि इस सबसे मैं खुद भी बहुत असहज मेहसूस कर रही थी। आखिर अलगे दिन मैंने फलणीकर से मिलकर अपनी समस्या साझा की। मैंने उनसे कहा, मुझे भारी जकड़न सी मेहसूस हो रही है। ऐसा लग रहा है कि मैंने कोई गुनाह कर दिया है।
फलणीकर मेरी बेचैनी समझ गए और कहा कि आश्रम के लोगों को बुलवाकर बात करता हूं। उन्होंने आठ-दस लोगों को बुलाया और चेतावनी दी कि महिला पत्रकार को धमकाने के मामले में अब आश्रम के पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उनकी चेतावनी रंग लाई और मुझे सीधे घेरना बंद हो गया, लेकिन कुछ दिनों तक हालात वैसे ही तनावपूर्ण बने रहे। बाद में मुझे पता चला वे मेरे खिलाफ केस के लिए किसी बड़े वकील को हायर कर रहे हैं।
इस बीच वह पीड़ित परिवार इंदौर से बाहर चला गया और मैं दिनों दिन आसाराम को और भी ज्यादा मजबूत और प्रभावशाली होते देखती रही। इंदौर उसकी दूसरी सल्तनत बन गई। नेता, मंत्री, मीडिया सब उसके इर्द-गिर्द जमा रहते। अखबारों में टीवी पर प्रवचनों का सीधा प्रसारण होता। बड़े-बड़े कवरेज होते गए, जो उसकी ताकत को और बढ़ाते गए। मैं दिल ही दिल सोचती रही, पता नहीं कितनी औरतें, कितनी मासूम लड़कियां इस शैतान को भगवान मान कर तबाह हो रही हैं।
खैर देश की न्यायपालिका को सलाम, जिसने 25 अप्रैल को आसाराम उम्र कैद का फैसला सुनाया। वरना ऐसा लग रहा था इस रात की तो कभी सुबह न होगी…